जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि सूक्ष्म उद्यमिता विकास कार्यक्रम ग्रामीणों विशेषकर परिपक्व स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म उद्यमिता का प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने हेतु प्रेरित करना है। ऐसे उद्यम जो उनके समूह द्वारा आसनी से संचालित किये जा सकें और तैयार माल की खपत भी आसानी से हो सके। सूक्ष्म उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत लघु अवधि के (7 दिन से लेकर 12 दिन तक) प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जाता है। संस्थान द्वारा सर्वप्रथम जनपद फर्रुखाबाद के विकास खण्ड बढ़पुर के ग्राम पपियापुर में सूक्ष्म उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत 4 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 34 महिलाओं को कैंडिल मेकिंग (मोमबत्ती बनाने) का प्रशिक्षण प्रदान किया। चूंकि यह ग्राम शहर से काफी नजदीक है अतः यहां मोमबत्ती बनाने हेतु कच्चा माल व तैयार माल की बिक्री के लिये ज्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। प्रशिक्षण अवधि 12 कार्यदिवसों में ग्रामीण महिलाओं ने कुशलतापूर्वक साधारण एवं कलात्मक मोमबत्तियों का निर्माण करना सीख लिया, तैयार माल की बिक्री के लिये स्थानीय व्यापारियों से भी उनका संपर्क कराया गया साथ ही महिलाओं को अपने समूह के द्वारा स्वयं मार्केटिंग के लिये भी तैयार किया गया। प्रशिक्षण के माध्यम से इन समूहों की महिलाओं ने मोमबत्ती बनाने के कार्य को व्यावसायिक रूप से प्रारम्भ कर लिया है और अपने गांव में रहकर उन्हें एक अच्छा रोजगार मिल गया है, आज यह समूह की इन महिलाओं की बनाई मोमबत्तियां दीपावली जैसे त्योहारों एवं अन्य विशेष अवसरों पर अपनी चमक बिखेरतीं है। चूंकि जनपद फर्रुखाबाद का आलू उत्पादन में विशेष स्थान है, अतः विकास खण्ड कमालगंज के ग्राम भूलनपुर में संस्थान द्वारा ग्रामीणों की विशेष मांग पर आलू चिप्स, कचरी, कुरकुरे आदि बनाने का 12 दिवसीय प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीणों को आलू उत्पादों के निर्माण, पैकिंग एवं विपणन का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। तेजी से व आधुनिक पैकिंग हेतु विशेष पैकिंग मशीन को गांव में स्थापित कर ग्रामीणों को मशीन के माध्यम से पैकिंग के गुर सिखाये गये। सूक्ष्म उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत संस्थान द्वारा समय-समय पर ग्रामीणों की मांग के आधार पर मधुमक्खी पालन, जैम, जैली, अचार, पैकेजिंग आदि के प्रशिक्षणों का सिलसिला निरंतर जारी है ताकि ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिल सके और ग्रामों से शहरों की ओर पलायन रूक सके।