ग्रामीणों को साहूकार के चुंगल से छुड़ाने, उन्हें एक नयी राह दिखाने और सामूहिक रूप से किसी व्यवसाय की स्थापना कराने, बचत की ओर प्रेरित करने व बैंकों से जोड़ने के उद्देश्य को लेकर भारतीय बाल विकास संस्थान द्वारा स्वयं सहायता समूहों के गठन/संचालन का कार्य फर्रुखाबाद, हरदोई, कन्नौज आदि जनपदों में किया जा रहा है। एक जैसी सामाजिक, आर्थिक स्थिति वाले 10 से 15 ग्रामीणों को एक साथ जोड़कर समूह के रूप में गठन कर यह लोग 25 से लेकर 100 रुपया प्रतिमाह की बचत करते हैं, और समूह के नाम से खोले गये बैंक खाते में जमा करते हैं। धीरे-धीरे एकत्रित की गई इस बचत के माध्यम से समूह के सदस्य आपसी ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और इस राशि को समूह के किसी सदस्य को आवश्यकता होने पर न्यूनतम ब्याज पर ऋण के रूप में दिया जाता है, इस प्रकार स्वयं सहायता समूह एक प्रकार से गरीबों का अपना खुद का बैंक है, जिसके संचालक, नियंत्रक वह स्वयं हैं। भारतीय बाल विकास संस्थान द्वारा स्वयं सहायता समूहों को अगरबत्ती बनाना, पापड़, अचार, जैम-जैली आदि विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों के माध्यम से सशक्त बनाने के प्रयास भी किये जा रहे हैं, ताकि वह अपने समूह के माध्यम से अपने जीवन स्तर को बेहतर बना सकें।
Joint Liability Group (संयुक्त देयता समूह)
ऐसे किसान जिनके पास स्वयं की भूमि नहीं है अथवा नहीं के बराबर है और दूसरों की कृषि भूमि को बटाई अथवा उगाही (पट्टे पर) लेकर कृषि कर रहे हैं ऐसे किसानों की कृषि ऋण आवश्यकताओं को पूर्ति के लिये राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा संयुक्त देयता समूह नामक योजना संचालित की जा रही है। नाबार्ड द्वारा भारतीय बाल विकास संस्थान को संयुक्त देयता समूह के गठन का कार्य सौंपा गया है, संस्थान द्वारा अपने फील्ड कार्यकर्ताओं के माध्यम से एक जैसी सामाजिक आर्थिक स्थिति वाले भूमिहीन/सीमांत कृषकांे को 4 से 8 व्यक्तियों के समूह में गठित कर आर्यावर्त ग्रामीण बैंक के सहयोग से संयुक्त देयता समूह योजना के अन्तर्गत उनकी ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति कराने का प्रयास किया जा रहा है, इस योजना के अन्तर्गत ऐसे किसान भी बैंक से अत्यन्त न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त कर पा रहे हैं जो अभी तक कृषि भूमि न होने के कारण बैंक की ऋण सुविधाओं से कोसों दूर थे।